Sunday, 14 August 2011

सप्तचक्रों के ध्यान से होने वाले अदभूत चमतकारीक लाभ...!




मूलाधार चक्र


प्रयत्नशील योगसाधक जब किसी महापुरूष का सान्निध्य प्राप्त करता है तथा अपने मूलाधार चक्र का ध्यान उसे लगता है तब उसे अनायास ही क्रमशः सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। वह योगी देवताओं द्वारा पूजित होता है तथा अणिमादि सिद्धियाँ प्राप्त कर वह त्रिलोक में इच्छापूर्वक विचरण कर सकता है। वह मेधावी योगी महावाक्य का श्रवण करते ही आत्मा में स्थिर होकर सर्वदा क्रीड़ा करता है। मूलाधार चक्र का ध्यान करने वाला साधक दादुरी सिद्धि प्राप्त कर अत्यंन्त तेजस्वी बनता है। उसकी जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा सरलता उसका स्वभाव बन जाता है। वह भूत, भविष्य तथा वर्त्तमान का ज्ञाता, त्रिकालदर्शी हो जाता है तथा सभी वस्तुओं के कारण को जान लेता है। जो शास्त्र कभी सुने न हों, पढ़े न हों, उनके रहस्यों का भी ज्ञान होने से उन पर व्याख्यान करने का सामर्थ्य उसे प्राप्त हो जाता है। मानो ऐसे योगी के मुख में देवी सरस्वती निवास करती है। जप करने मात्र से वह मंत्रसिद्धि प्राप्त करता है। उसे अनुपम संकल्प-सामर्थ्य प्राप्त होता है।
जब योगी मूलाधार चक्र में स्थित स्वयंभु लिंग का ध्यान करता है, उसी क्षण उसके पापों का समूह नष्ट हो जाता है। किसी भी वस्तु की इच्छा करने मात्र से उसे वह प्राप्त हो जाती है। जो मनुष्य आत्मदेव को छोड़कर बाह्य देवों की पूजा करते हैं, वे हाथ में रखे हुए फल को छोड़कर अन्य फलों के लिए इधर-उधर भटकते हैं। अतः सुज्ञ सज्जनों को आलस्य छोड़कर शरीरस्थ शिव का ध्यान करना चाहिए। यह ध्यान परम पूजा है, परम तप है, परम पुरूषार्थ है।
मूलाधार के अभ्यास से छः माह में ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इससे सुषुम्णा नाड़ी में वायु प्रवेश करती है। ऐसा साधक मनोजय करके परम शांति का अनुभव करता है। उसके दोनों लोक सुधर-सँवर जाते हैं।

स्वाधिष्ठान चक्र

 
इस चक्र के ध्यान से कामांगना काममोहित होकर उसकी सेवा करती है। जो कभी सुने न हों ऐसे शास्त्रों का रहस्य वह बयान कर सकता है। सर्व रोगों से विमुक्त होकर वह संसार में सुखरूप विचरता है। स्वाधिष्ठान चक्र का ध्यान करने वाला योगी मृत्यु पर विजय प्राप्त करके अमर हो जाता है। अणिमादि सिद्धियाँ प्राप्त कर उसके शरीर में वायु का संचार होता है जो सुषुम्णा नाड़ी में प्रविष्ट होता है। रस की वृद्धि होती है। सहस्रदल पद्म से जिस अमृत का स्राव होता है उसमें भी वृद्धि होती है।

मणिपुर चक्र

इस चक्र का ध्यान करने वाले को सर्वसिद्धिदायी पातालसिद्धि प्राप्त होती है। उसके सब दुःखों की निवृत्ति होकर सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं। वह काल को भी जीत लेता है अर्थात् काल को भी टाल सकता है। ऋषि कागभुशंडिजी ने काल की वंचना करके सैंकड़ों युगों की परम्परा देखी थी। चांगदेवजी ने इसी सिद्धि के बल पर 1400 वर्ष का आयुष्य प्राप्त किया था। जिनको आत्मसाक्षात्कार हो गया ऐसे महापुरूष भी चाहें तो इस सिद्धि से दीर्घजीवी हो सकते हैं लेकिन आत्मवेत्ताओं में लम्बे जीवन की चाह होती ही नहीं है। शास्त्रों में ऐसे कई दृष्टान्त पाये जाते हैं।
ऐसे योगसाधक को परकाया-प्रवेश की सिद्धि प्राप्त होती है। यह स्वर्ण बना सकता है। वह देवों के द्रव्य भंडारों को और दिव्य औषधियों तथा भूमिगत गुप्त खजानों को भी देख सकता है।

अनाहत चक्र

इस चक्र का ध्यान करने वाले साधक पर कामातुर स्त्री, अप्सरा आदि मोहित हो जाते हैं। उस साधक को अपूर्व ज्ञान प्राप्त होता है। वह त्रिकालदर्शी होकर दूरदर्शन, दूरश्रवण की शक्ति प्राप्त कर यथेच्छा आकाशगमन करता है। अनाहत चक्र का नित्य निरंतर ध्यान करने से उसे देवता और योगियों के दर्शन होते हैं तथा उसे भूचरी सिद्धि प्राप्त होती है। इस चक्र के ध्यान की महिमा का कोई पूरा बयान नहीं कर सकता। ब्रह्मादि देवता भी उसे गुप्त रखते हैं।

विशुद्धाख्य चक्र

 
जो योगी इस चक्र का ध्यान करता है उसे चारों वेदों के रहस्य की प्राप्ति होती है। इस चक्र में यदि योगी मन और प्राण स्थिर करके क्रोध करे तो तीनों लोक कम्पायमान होते हैं जैसा विश्वामित्र ने किया था। इसमें कोई संदेह नहीं। इस चक्र में मन जब लय होता है तब योगी के मन और प्राण अन्तस में रमण करने लगते हैं। उस योगी का शरीर वज्र से भी अधिक कठोर हो जाता है। 

आज्ञाचक्र



इस चक्र का ध्यान करने से पूर्वजन्म के सकल कर्मों का बन्धन छूट जाता है। यक्ष, राक्षस, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर आदि उस ध्यानयुक्त योगी के वश हो जाते हैं। आज्ञाचक्र में ध्यान करते समय जिह्वा ऊर्ध्वमुखी (तालू की ओर) रखनी चाहिए। इससे सर्वपातक नष्ट होते हैं। ऊपर बताये हुए पाँचों चक्रों के ध्यान का फल इस चक्र के ध्यान से ही प्राप्त होता है। वह वासना के बन्धन से मुक्त होता है। इस चक्र का ध्यान करने वाला राजयोग का अधिकारी बनता है।

सहस्रार चक्र

 

 इस सहस्रदल कमल में स्थित ब्रह्मरंध्र का ध्यान करने से योगी को परमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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