Monday 15 September 2014

आकर्ण धनुरासन

 आकर्ण धनुरासन – 

इस आसन में शरीर की स्थिति ऐसी दिखती है जैसे कोई धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खींचकर लक्ष्य को बेधना चाहता हो, इसलिए इस आसन का नाम ‘आकर्ण धनुरासन’ है |

लाभ : १) विद्यार्थियों तथा अधिक लेखन-कार्य करनेवालों के लिए यह आसन वरदानस्वरुप हैं |
       २) हाथ-पैर व गर्दन के जोड़ों तथा स्नायु और मेरुदंड का उचित व्यायाम हो जाता है और वे सशक्त बनते हैं तथा शरीर लचीला होता है |

३) पेट और सीने का हलका व्यायाम होता है तथा उनके दोष दूर होते हैं |
४) खाँसी, दमा और क्षय (टी.बी.) में लाभ होता हैं |
५) फेफड़े मजबूत बनते हैं और सीने का विकास होता है |
६) कमर का दर्द, गले की तकलीफ, अपच, कब्ज, बगल (काँख) की ग्रन्थि, संधिवात, पैरों की पीड़ा आदि में लाभ होता है |
७) स्रियों की मासिक धर्म की अनियमितता, गर्भाशयसंबंधी शिकायतें और पेडू की पीड़ा दूर होती है |

विधि :

 जमीन पर पैर सीधे फैलाकर बैठ जाये | फिर बाये हाथ से दाये पैर का अंगूठा और दायें हाथ से बायें पैर का अंगूठा पकड़ें | दायें हाथ की कुहनी को धीरे-धीरे पीछे की ओर खींचते हुये बायाँ पैर मोडकर उसके अँगूठे को दायें कान तक ले आयें | हाथ की मडी हुई कुहनी सिर के ऊपर की ओर होनी चाहिए | दायाँ पैर सीधा रहे | श्वास कुछ देर रोककर धीरे-धीरे छोड़ें | इसी प्रकार दुसरे पैर से भी करें |


सावधानी: यदि पैर, कुल्हे और पेट में किसी प्रकार का गम्भीर रोग हो तो इस आसन को न करें |


  -ऋषिप्रसाद

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